बिहार के मुजफ्फरपुर के किसान सुनील कुमार के पास निर्यात का कोई लाइसेंस नहीं है। लेकिन उनकी 750 किलोग्राम लीची लंदन पहुंच गई। वैसे ही एक अन्य किसान की 5 टन लीची जर्मनी जा रही है। आगे भी देश के कई किसानों के उत्पादों को विदेशी बाजार में बेचने की कवायद जारी है। आइटी मंत्रालय के कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) के माध्यम से यह कवायद की जा रही है। इस पूरी कवायद में किसानों को अपने उत्पाद को बेचने के लिए गांव से बाहर तक नहीं निकलना पड़ता है। माल बिकते ही पूरी कीमत किसान के खाते में आ जाती है।
किसानों को सीएससी के ई-मार्ट पोर्टल पर अपना रजिस्ट्रेशन कराना होता है। रजिस्ट्रेशन के दौरान किसानों को यह बताना पड़ता है कि उनका उत्पाद क्या है, उसका साइज क्या है और वह किस कीमत पर उसे बेचना चाहते हैं। पोर्टल पर किसानों को अपनी जमीन की जानकारी एवं किसान होने के अन्य प्रमाण भी देने पड़ते हैं। बैंक खाता होना जरूरी है। पैन कार्ड नहीं है तब भी रजिस्ट्रेशन हो जाएगा। रजिस्ट्रेशन के काम में किसानों की मदद विलेज लेवल एंट्रेप्रेन्योर (वीएलई) करते हैं। किसानों की तरफ से बिक्री के लिए तैयार उत्पादों की पूरी जानकारी देने के बाद यह जानकारी ट्रेडर्स और एग्री निर्यातकों के साथ शेयर की जाती है।
सीएससी के सीईओ दिनेश त्यागी ने बताया कि ई-मार्ट प्लेटफार्म पर ही ट्रेडर्स और एग्री निर्यातक भी है, लेकिन उन्हें सिर्फ किसान के उत्पाद को दिखाया जाता है और फिर वे बोली लगाते हैं। ट्रेडर्स और निर्यातकों को यह पता नहीं होता है किसान उस उत्पाद की क्या कीमत चाह रहा है। त्यागी ने बताया कि यही वजह है कि पुणे का टमाटर किसान दत्तात्रेय बडबडे अपना टमाटर 10 रुपए किलोग्राम बेचना चाहता था और उसे 10.50 रुपए प्रति किलोग्राम की कीमत मिल गई।